हज़ार रंग-ब-दामाँ सही मगर दुनिया
बस एक सिलसिला-ए-एतिबार है, क्या है
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रह-ए-वफ़ा के हर इक पेच-ओ-ख़म को जान लिया
ऐ दिल समाअतों पे सितम की दुहाई दे
हर एक लम्हा तबीअत पे बार है, क्या है
समुंदर पुर-सुकूँ है दिल का तुग़्यानी नहीं कोई
ऐ मौज-ए-सबा सोज़-ए-मुजस्सम उसे कहना
अब अहल-ए-दिल हैं कि नायाब होते जाते हैं
ग़ुबार-ए-राह के मानिंद रहगुज़ार में हैं
अब उस की याद सताने को बार बार आए
मोहर-ब-लब है किस लिए, किस लिए बोलता नहीं