घड़ी घड़ी न इधर देखिए कि दिल पे मुझे
है इख़्तियार पर इतना भी इख़्तियार नहीं
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जब क़फ़स में मुझ को याद-ए-आशियाँ आ जाए है
न दुनिया का हूँ मैं न कुछ फ़िक्र दीं का
तुम तो ठुकरा कर गुज़र जाओ तुम्हें टोकेगा कौन
तार की झंकार ही से बज़्म थर्रा जाए है
मैं अब तो ऐ जुनूँ तिरे हाथों से तंग हूँ
सिर्फ़ इक लर्ज़िश है नोक-ए-ख़ार पर शबनम की बूँद