दावर-ए-हश्र ज़रा और बढ़े बात कि बस

दावर-ए-हश्र ज़रा और बढ़े बात कि बस

मुझ से कुछ और भी पूछेंगे सवालात कि बस

जिस को सुन कर कभी ख़ुश होते हो नाराज़ कभी

आप फ़रमाएँ कि दोहराऊँ वही बात कि बस

क्या मैं अब छोड़ दूँ यारब यहीं उम्मीद का साथ

क्या अभी और ठहर सकती है ये रात कि बस

ज़िंदगी क्या इसी उलझन में गुज़र जाएगी

क्या अभी और भी बिगड़ेंगे ये हालात कि बस

ये क़यामत की घड़ी सर से टलेगी यारब

हैं दिखाने को अभी और कमालात कि बस

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In Hindi By Famous Poet Om Krishn Rahat. is written by Om Krishn Rahat. Complete Poem in Hindi by Om Krishn Rahat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.