दैर-ओ-काबा की अज़्मत मुसल्लम मगर

दैर-ओ-काबा की अज़्मत मुसल्लम मगर

मय-कदा भी ख़ुदा ही के घर सा लगे

चाँद तारों की जो दे रहा है ख़बर

देखने में तो वो बे-ख़बर सा लगे

गुमरही में भी दीवाना-ए-दिल-फ़िगार

मंज़िल-ए-होश का राहबर सा लगे

ये जहाँ रश्क-ए-जन्नत है किस के लिए

और किसी को यही दर्द-ए-सर सा लगे

झील में अध-खिले फूल पर चाँदनी

हम को मंज़र ये तेरी नज़र सा लगे

शम-ए-बज़्म-ए-अदब था वो कल तक मगर

आज 'लाग़र' चराग़-ए-सहर सा लगे

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In Hindi By Famous Poet Om Prakash Laghar. is written by Om Prakash Laghar. Complete Poem in Hindi by Om Prakash Laghar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.