आँसुओं में मिरे काँधे को डुबोने वाले
पूछ तो ले कि मिरे जिस्म का सहरा है कहाँ
Jaun Eliya
Gulzar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(422) Peoples Rate This
वो नशा है के ज़बाँ अक़्ल से करती है फ़रेब
तुम्हें आँसू बहाने को भी मिल जाएँ कई कंधे
वो बार-ए-फ़र्ज़-ए-तकल्लुफ मुझी को धोना पड़ा
ये जिस्म तंग है सीने में भी लहु कम है
वो नशा है कि ज़बाँ अक़्ल से करती है फ़रेब
आँसुओं से मिरे काँधे को डुबोने वाले
मकीन-ए-दिल को ख़ानुमा-ख़राबियों से इश्क़ था
तमाम होश ज़ब्त इल्म मस्लहत के बा'द भी