लर्ज़ां है किसी ख़ौफ़ से जो शाम का चेहरा
आँखों में कोई ख़्वाब पिरोने नहीं देता
Gulzar
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Rahat Indori
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(453) Peoples Rate This
एहसास-ए-ज़ियाँ चैन से सोने नहीं देता
ज़र्द पेड़ों पे शाम है गिर्यां
वो राब्ते भी अनोखे जो दूरियाँ बरतें
शबनम भीगी घास पे चलना कितना अच्छा लगता है
आँधियाँ आती हैं और पेड़ गिरा करते हैं
यूँ तो अपनों सा कुछ नहीं इस में
किसी का नक़्श अंधेरे में जब उभर आया
जले मकानों में भूत बैठे बड़ी मतानत से सोचते हैं
आँख पत्थर की तरह अक्स से ख़ाली होगी
दुश्मनी की इस हवा को तेज़ होना चाहिए
रफ़्ता रफ़्ता सब मनाज़िर खो गए अच्छा हुआ
हवा से ज़र्द पत्ते गिर रहे हैं