अब उन दरीचों पे गहरे दबीज़ पर्दे हैं
वो ताँक-झाँक का मासूम सिलसिला भी गया
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जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे
तेरे पैमाने में गर्दिश नहीं बाक़ी साक़ी
अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई
लेकिन बड़ी देर हो चुकी थी
मक़्तल-ए-वक़्त में ख़ामोश गवाही की तरह
ज़ुल्म सहना भी तो ज़ालिम की हिमायत ठहरा
बख़्त से कोई शिकायत है न अफ़्लाक से है
गूँगे लबों पे हर्फ़-ए-तमन्ना किया मुझे
मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था
अजब नहीं है कि दिल पर जमी मिली काई
तितलियाँ पकड़ने में दूर तक निकल जाना
टूटी है मेरी नींद मगर तुम को इस से क्या