इतना बे-आसरा नहीं हूँ मैं
आदमी हूँ ख़ुदा नहीं हूँ मैं
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वक़्त अच्छा ज़रूर आता है
सौदा-ए-इश्क़ यूँ भी उतरना तो है नहीं
पूछा था मैं ने जब उसे क्या मुझ से इश्क़ है?
अद्ल को भी मीज़ान में रखना पड़ता है
कोई नज़र न पड़ सके मुझ हाल-मस्त पर
बस एक ध्यान की मैं उँगली थाम रखी है
मेरी फ़ितरत ही में शामिल है मोहब्बत करना
'साहिर' ये मेरा दीदा-ए-गिर्यां है और मैं
यूँ नहीं वो नज़र नहीं आता
नैरंगी-ए-ख़याल पे हैरत नहीं हुई
ब-ज़ोम-ए-ख़ुद कहीं ख़ुद से वरा न हो जाऊँ