कश्ती-ए-हयात खे सकूँगा क्यूँ-कर
हिम्मत का मैं साथ दे सकूँगा क्यूँ-कर
साक़ी न अगर तेरा सहारा होगा
जीने का मैं नाम ले सकूँगा क्यूँ-कर
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होंटों को शराब अब पिला दे साक़ी
मौक़ा-ए-यास कभी तेरी नज़र ने न दिया
निपटेंगे दिल से मार्का-ए-रह-गुज़र के ब'अद
ज़िंदगी ने फ़स्ल-ए-गुल को भी पशेमाँ कर दिया
साग़र-ए-सिफ़ालीं को जाम-ए-जम बनाया है
याद हैं आप के तोड़े हुए पैमाँ हम को
दिल की धड़कनों से इक दास्ताँ बनाना है
बे-चेहरगी
ये सुम्बुल-ओ-नस्रीं मेरे हैं ये सेहन-ए-गुलिस्ताँ मेरा है
लज़्ज़त में ख़ुदी की खो गया है ज़ाहिद
फ़सुर्दा है इल्म हर्फ़-हा-ए-किताब भी बुझ के रह गए हैं
रोता ही रहूँगा मुस्कुराने तो दो