लज़्ज़त में ख़ुदी की खो गया है ज़ाहिद
दूर दूर ख़ुदा से हो गया है ज़ाहिद
सुनता नहीं अब शिकस्ता मस्जिद की सदा
सज्दे में कुछ ऐसा सो गया है ज़ाहिद
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
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Habib Jalib
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Anwar Masood
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ज़िंदगी ने फ़स्ल-ए-गुल को भी पशेमाँ कर दिया
बहरा गोया
जलते रहना काम है दिल का बुझ जाने से हासिल क्या
मौक़ा-ए-यास कभी तेरी नज़र ने न दिया
मस्ती में नज़र चमक रही है साक़ी
सख़्त-जाँ वो हूँ कि मक़्तल से सर-अफ़राज़ आया
बुलबुल की ज़बाँ तक जला डाली है
तुम ख़ुनुक जज़्बा हो बे-ताबी-ए-फ़न क्या जानो?
न जाने कह गए क्या आप मुस्कुराने में
ब़ाँबी
याद हैं आप के तोड़े हुए पैमाँ हम को