होंटों को शराब अब पिला दे साक़ी
रग रग में इक आग लगा दे साक़ी
तारीक हुई जाती है बज़्म-ए-हस्ती
साक़ी! साक़ी! तू मुस्कुरा दे साक़ी
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मौक़ा-ए-यास कभी तेरी नज़र ने न दिया
जलते रहना काम है दिल का बुझ जाने से हासिल क्या
लज़्ज़त में ख़ुदी की खो गया है ज़ाहिद
हर पत्ते में इक धार लिए चटकेंगे
ख़ामोशी बोहरान-ए-सदा है तुम भी चुप हो हम भी चुप
छुप कर न रह सके निगह-ए-अहल-ए-फ़न से हम
मिरी ज़िंदगी की ज़ीनत हुई आफ़त-ओ-बला से
ब़ाँबी
सैलाब-ए-बला रक़्स न फ़रमाए कहीं
सुन सकते हो नग़्मा आज भी तुम मेरा
याद हैं आप के तोड़े हुए पैमाँ हम को
नालों से कभी नाम न लूँगा ऐ दोस्त