नालों से कभी नाम न लूँगा ऐ दोस्त
रुस्वाई का इल्ज़ाम न लूँगा ऐ दोस्त
बद-नाम न होगी कभी ख़ल्वत तेरी
महफ़िल में तिरा नाम न लूँगा ऐ दोस्त
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बाँध कर कफ़न सर से यूँ खड़ा हूँ मक़्तल में
ख़ामोशी बोहरान-ए-सदा है तुम भी चुप हो हम भी चुप
छुप कर न रह सके निगह-ए-अहल-ए-फ़न से हम
शिकायत कर रहे हैं सज्दा-हा-ए-राएगाँ मुझ से
याद हैं आप के तोड़े हुए पैमाँ हम को
सहमे सहमे दिलों में हिम्मत जागी
दिल ही की तरह मुँह भी है काला देखो
मौक़ा-ए-यास कभी तेरी नज़र ने न दिया
तुम ख़ुनुक जज़्बा हो बे-ताबी-ए-फ़न क्या जानो?
मैं मुंकिर-ए-अस्लाफ़ नहीं हूँ यारो
ये सुम्बुल-ओ-नस्रीं मेरे हैं ये सेहन-ए-गुलिस्ताँ मेरा है
सहराओं की बात ज़ारों में कही