मौसम अजीब रहता है दल के दयार का
आगे हैं लू के झोंके भी ठंडी हवा के बा'द
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सब्ज़ मौसम से मुझे क्या लेना
मेरा मज़हब इश्क़ का मज़हब जिस में कोई तफ़रीक़ नहीं
उस के आँगन में रौशनी थी मगर
थोड़ी सी शोहरत भी मिली है थोड़ी सी बदनामी भी
होने लगे हैं रस्ते रस्ते, आपस के टकराव बहुत
उबलते पानियों में हूँ कहाँ उबाल की तरह
कहाँ है कोई ख़ुदा का ख़ुदा के बंदों में
साज़ से मेरे ग़लत नग़्मों की उम्मीद न कर
मौसम तो बदलते हैं लेकिन क्या गर्म हवा क्या सर्द हवा
वो जो सब का बहुत चहीता था
सुलग रही है ज़मीं या सिपहर आँखों में