साज़ से मेरे ग़लत नग़्मों की उम्मीद न कर
आग की आग है दिल में तो धुआँ क्यूँकर हो
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उस के आँगन में रौशनी थी मगर
सब्ज़ मौसम से मुझे क्या लेना
होने लगे हैं रस्ते रस्ते, आपस के टकराव बहुत
मौसम तो बदलते हैं लेकिन क्या गर्म हवा क्या सर्द हवा
वो जो सब का बहुत चहीता था
एक पौदा जो उगा है उसे पानी देना
मौसम अजीब रहता है दल के दयार का
मेरा मज़हब इश्क़ का मज़हब जिस में कोई तफ़रीक़ नहीं
उबलते पानियों में हूँ कहाँ उबाल की तरह
किसी मंज़िल में भी हासिल न हुआ दिल को क़रार
कहाँ है कोई ख़ुदा का ख़ुदा के बंदों में