उस के आँगन में रौशनी थी मगर
घर के अंदर बड़ा अँधेरा था
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मौसम अजीब रहता है दल के दयार का
थोड़ी सी शोहरत भी मिली है थोड़ी सी बदनामी भी
मेरा मज़हब इश्क़ का मज़हब जिस में कोई तफ़रीक़ नहीं
सुलग रही है ज़मीं या सिपहर आँखों में
होने लगे हैं रस्ते रस्ते, आपस के टकराव बहुत
सब्ज़ मौसम से मुझे क्या लेना
साज़ से मेरे ग़लत नग़्मों की उम्मीद न कर
किसी मंज़िल में भी हासिल न हुआ दिल को क़रार
एक पौदा जो उगा है उसे पानी देना
वो जो सब का बहुत चहीता था
मौसम तो बदलते हैं लेकिन क्या गर्म हवा क्या सर्द हवा