किसी मंज़िल में भी हासिल न हुआ दिल को क़रार
ज़िंदगी ख़्वाहिश-ए-नाकाम ही करते गुज़री
Habib Jalib
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Allama Iqbal
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Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Parveen Shakir
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होने लगे हैं रस्ते रस्ते, आपस के टकराव बहुत
सुलग रही है ज़मीं या सिपहर आँखों में
मेरा मज़हब इश्क़ का मज़हब जिस में कोई तफ़रीक़ नहीं
मौसम अजीब रहता है दल के दयार का
मौसम तो बदलते हैं लेकिन क्या गर्म हवा क्या सर्द हवा
साज़ से मेरे ग़लत नग़्मों की उम्मीद न कर
वो जो सब का बहुत चहीता था
एक पौदा जो उगा है उसे पानी देना
शिकस्ता ख़्वाब के मलबे में ढूँढता क्या है
थोड़ी सी शोहरत भी मिली है थोड़ी सी बदनामी भी
उस के आँगन में रौशनी थी मगर
कहाँ है कोई ख़ुदा का ख़ुदा के बंदों में