सावन एक महीने 'क़ैसर' आँसू जीवन भर
इन आँखों के आगे बादल बे-औक़ात लगे
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फ़न वो जुगनू है जो उड़ता है हवा में 'क़ैसर'
आज बरसों में तो क़िस्मत से मुलाक़ात हुई
रक्खी न ज़िंदगी ने मिरी मुफ़लिसी की शर्म
ये वो बस्ती ही नहीं
मुसाफ़िरों का कभी ए'तिबार मत करना
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है
रास्ता देख के चल वर्ना ये दिन ऐसे हैं
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
घर लौट के रोएँगे माँ बाप अकेले में
टूटे हुए ख़्वाबों की चुभन कम नहीं होती
तिरी गली में तमाशा किए ज़माना हुआ