तू इस तरह से मिरे साथ बेवफ़ाई कर
कि तेरे बाद मुझे कोई बेवफ़ा न लगे
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टूटे हुए ख़्वाबों की चुभन कम नहीं होती
ज़ुल्फ़ घटा बन कर रह जाए आँख कँवल हो जाए
अपनी तन्हाई की पलकों को भिगो लूँ पहले
दर-ओ-दीवार पे हिजरत के निशाँ देख आएँ
हवा बहुत है मता-ए-सफ़र सँभाल के रख
दिल बे-तब-ओ-ताब हो गया है
घर बसा कर भी मुसाफ़िर के मुसाफ़िर ठहरे
ज़िंदगी ने मिरा पीछा नहीं छोड़ा अब तक
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है
तुम आ गए हो ख़ुदा का सुबूत है ये भी
तुम से बिछड़े दिल को उजड़े बरसों बीत गए
मैं पिछली रात क्या जाने कहाँ था