तुम आ गए हो ख़ुदा का सुबूत है ये भी
क़सम ख़ुदा की अभी मैं ने तुम को सोचा था
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मुसाफ़िरों का कभी ए'तिबार मत करना
ज़िंदगी ने मिरा पीछा नहीं छोड़ा अब तक
फ़न वो जुगनू है जो उड़ता है हवा में 'क़ैसर'
दिल बे-तब-ओ-ताब हो गया है
अहद-ए-जुनूँ में बैठे बैठे जो ग़ज़लें लिख डाली थीं
मैं ज़हर पीता रहा ज़िंदगी के हाथों से
सारी दुनिया के तअल्लुक़ से जो सोचा जाता
मुसाफ़िर चलते चलते थक गए मंज़िल नहीं मिलती
ज़ख़्मों को मरहम कहता हूँ क़ातिल को मसीहा कहता हूँ
वो फूल जो मिरे दामन से हो गए मंसूब
ये ज़िंदगी है कि आसेब का सफ़र है मियाँ
वो एक ख़ेमा-ए-शब जिस का नाम दुनिया था