मुसाफ़िर चलते चलते थक गए मंज़िल नहीं मिलती
क़दम के साथ बढ़ता जा रहा हो फ़ासला जैसे
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Rahat Indori
Habib Jalib
Allama Iqbal
Anwar Masood
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Gulzar
Mohsin Naqvi
Love Poetry
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Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
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ज़ख़्मों को मरहम कहता हूँ क़ातिल को मसीहा कहता हूँ
आज बरसों में तो क़िस्मत से मुलाक़ात हुई
अहद-ए-जुनूँ में बैठे बैठे जो ग़ज़लें लिख डाली थीं
तिरी गली में तमाशा किए ज़माना हुआ
दिन की बेदर्द थकन चेहरे पे ले कर मत जा
ये वो बस्ती ही नहीं
हर शख़्स है इश्तिहार अपना
मैं ज़हर पीता रहा ज़िंदगी के हाथों से
ये वक़्त बंद दरीचों पे लिख गया 'क़ैसर'
फ़न वो जुगनू है जो उड़ता है हवा में 'क़ैसर'
घर लौट के रोएँगे माँ बाप अकेले में
न सवाल-ए-जाम न ज़िक्र-ए-मय उसी बाँकपन से चले गए