हर शख़्स है इश्तिहार अपना
हर चेहरा किताब हो गया है
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तू इस तरह से मिरे साथ बेवफ़ाई कर
घर लौट के रोएँगे माँ बाप अकेले में
मुसाफ़िरों का कभी ए'तिबार मत करना
वो एक ख़ेमा-ए-शब जिस का नाम दुनिया था
मायूसी की बर्फ़ पड़ी थी लेकिन मौसम सर्द न था
तुम से दो हर्फ़ का ख़त भी नहीं लिक्खा जाता
ज़ेहन में कौन से आसेब का डर बाँध लिया
तुम आ गए हो ख़ुदा का सुबूत है ये भी
काग़ज़ काग़ज़ धूल उड़ेगी फ़न बंजर हो जाएगा
अपनी तन्हाई की पलकों को भिगो लूँ पहले
इस दौर की पलकों पे हैं आँसू की तरह हम