ज़िंदगी ने मिरा पीछा नहीं छोड़ा अब तक
उम्र भर सर से न उतरी ये बला कैसी थी
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Jaun Eliya
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(890) Peoples Rate This
काग़ज़ काग़ज़ धूल उड़ेगी फ़न बंजर हो जाएगा
शहर-ए-ग़ज़ल में धूल उड़ेगी फ़न बंजर हो जाएगा
चाँदनी था कि ग़ज़ल था कि सबा था क्या था
पिया करते हैं छुप कर शैख़ जी रोज़ाना रोज़ाना
जो डूबना है तो इतने सुकून से डूबो
सारी दुनिया के तअल्लुक़ से जो सोचा जाता
मैं पिछली रात क्या जाने कहाँ था
दश्त-ए-तन्हाई में कल रात हवा कैसी थी
यूँ बड़ी देर से पैमाना लिए बैठा हूँ
नीली जिल्द की किताब
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है
हवा बहुत है मता-ए-सफ़र सँभाल के रख