ज़िंदगी भर के लिए रूठ के जाने वाले
मैं अभी तक तिरी तस्वीर लिए बैठा हूँ
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बरसों के रत-जगों की थकन खा गई मुझे
फ़न वो जुगनू है जो उड़ता है हवा में 'क़ैसर'
दिल बे-तब-ओ-ताब हो गया है
तुम आ गए हो ख़ुदा का सुबूत है ये भी
दर-ओ-दीवार पे हिजरत के निशाँ देख आएँ
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है
सदियों तवील रात के ज़ानू से सर उठा
दिन की बेदर्द थकन चेहरे पे ले कर मत जा
ज़ेहन में कौन से आसेब का डर बाँध लिया
चाँदनी था कि ग़ज़ल था कि सबा था क्या था
मैं पिछली रात क्या जाने कहाँ था
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे