शुक्रिया ऐ क़ब्र तक पहुँचाने वालो शुक्रिया
अब अकेले ही चले जाएँगे इस मंज़िल से हम
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Habib Jalib
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(466) Peoples Rate This
कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं
देखते हैं रक़्स में दिन रात पैमाने को हम
रोएँगे देख कर सब बिस्तर की हर शिकन को
मुझे मेरे मिटने का ग़म है तो ये है
सुकूँ-पसंद जो दीवानगी मिरी होती
जल्वा-गर बज़्म-ए-हसीनाँ में हैं वो इस शान से
जिगर का दाग़ छुपाओ 'क़मर' ख़ुदा के लिए
इस लिए आरज़ू छुपाई है
हुक्म-ए-सय्याद है ता-ख़त्म-ए-तमाशा-ए-बहार
साँस उन के मरीज़-ए-हसरत की रुक रुक के चलती जाती है
बढ़ा बढ़ा के जफ़ाएँ झुका ही दोगे कमर
मिरा ख़ामोश रह कर भी उन्हें सब कुछ सुना देना