शब को मिरा जनाज़ा जाएगा यूँ निकल कर
रह जाएँगे सहर को दुश्मन भी हाथ मल कर
Gulzar
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(468) Peoples Rate This
कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं
कभी कहा न किसी से तिरे फ़साने को
सुरमे का तिल बना के रुख़-ए-ला-जवाब में
मूसा समझे थे अरमाँ निकल जाएगा
बारिश में अहद तोड़ के गर मय-कशी हुई
सुकूँ-पसंद जो दीवानगी मिरी होती
'क़मर' ज़रा भी नहीं तुम को ख़ौफ़-ए-रुस्वाई
ज़रा रूठ जाने पे इतनी ख़ुशामद
हालात-ए-गुलिस्ताँ पे बहुत हम ने नज़र की
यही है गर ख़ुशी तो रात भर गिनते रहो तारे
बढ़ा बढ़ा के जफ़ाएँ झुका ही दोगे कमर
करेंगे शिकवा-ए-जौर-ओ-जफ़ा दिल खोल कर अपना