सुरमे का तिल बना के रुख़-ए-ला-जवाब में
नुक़्ता बढ़ा रहे हो ख़ुदा की किताब में
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अबरू तो दिखा दीजिए शमशीर से पहले
काम आईं शोख़ियाँ न अदा कारगर हुई
यूँ तुम्हारे ना-तवान-ए-शौक़ मंज़िल भर चले
अभी बाक़ी हैं पत्तों पर जले तिनकों की तहरीरें
मूसा समझे थे अरमाँ निकल जाएगा
हुस्न कब इश्क़ का ममनून-ए-वफ़ा होता है
दबा के क़ब्र में सब चल दिए दुआ न सलाम
मुझे बाग़बाँ से गिला ये है कि चमन से बे-ख़बरी रही
जिगर का दाग़ छुपाओ 'क़मर' ख़ुदा के लिए
रहा बरसात में ऐ शैख़ मैं सूखा न तू सूखा
उन्हें क्यूँ फूल दुश्मन ईद में पहनाए जाते हैं
सुकूँ-पसंद जो दीवानगी मिरी होती