काम आईं शोख़ियाँ न अदा कारगर हुई
जो बात थी तुम्हारी वही बे-असर हुई
ख़ल्वत में जा के हँस दिए क्या इस से फ़ाएदा
सहरा में फूल खिल गया किस को ख़बर हुई
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तुझे क्या नासेहा अहबाब ख़ुद समझाए जाते हैं
अगर छूटा भी उस से आइना-ख़ाना तो क्या होगा
'क़मर' किसी से भी दिल का इलाज हो न सका
जल्वा-गर बज़्म-ए-हसीनाँ में हैं वो इस शान से
इस में कोई फ़रेब तो ऐ आसमाँ नहीं
शुक्रिया ऐ क़ब्र तक पहुँचाने वालो शुक्रिया
पूछो न अरक़ रुख़्सारों से रंगीनी-ए-हुस्न को बढ़ने दो
मुद्दतें हुईं अब तो जल के आशियाँ अपना
आह को समझे हो क्या दिल से अगर हो जाएगी
मैं उन सब में इक इम्तियाज़ी निशाँ हूँ फ़लक पर नुमायाँ हैं जितने सितारे
मूसा समझे थे अरमाँ निकल जाएगा
सुना है ग़ैर की महफ़िल में तुम न जाओगे