पढ़ चुके हुस्न की तारीख़ को हम तेरे ब'अद
इश्क़ आगे न बढ़ा एक क़दम तेरे ब'अद
आज तक फिर कोई तस्वीर न ऐसी खींची
जैसे खा ली हो मुसव्विर ने क़सम तेरे ब'अद
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सोज़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ से दिल को बचाए कौन
कभी कहा न किसी से तिरे फ़साने को
देखते हैं रक़्स में दिन रात पैमाने को हम
तुम को हम ख़ाक-नशीनों का ख़याल आने तक
ज़ब्त करता हूँ तो घुटता है क़फ़स में मिरा दम
देखिए हो गई बदनाम मसीहाई भी
कौन से थे वो तुम्हारे अहद जो टूटे न थे
साँस उन के मरीज़-ए-हसरत की रुक रुक के चलती जाती है
'क़मर' किसी से भी दिल का इलाज हो न सका
दोनों हैं उन के हिज्र का हासिल लिए हुए
कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं