रुस्वा करेगी देख के दुनिया मुझे 'क़मर'
इस चाँदनी में उन को बुलाने को जाए कौन
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लहद और हश्र में ये फ़र्क़ कम पाए नहीं जाते
देखिए हो गई बदनाम मसीहाई भी
ये रस्ते में किस से मुलाक़ात कर ली
मुद्दतें हुईं अब तो जल के आशियाँ अपना
कौन से थे वो तुम्हारे अहद जो टूटे न थे
बढ़ा बढ़ा के जफ़ाएँ झुका ही दोगे कमर
शैख़ आख़िर ये सुराही है कोई ख़ुम तो नहीं
रौशन है मेरा नाम बड़ा नामवर हूँ मैं
मुझे मेरे मिटने का ग़म है तो ये है
सुर्ख़ियाँ क्यूँ ढूँढ कर लाऊँ फ़साने के लिए
हटी ज़ुल्फ़ उन के चेहरे से मगर आहिस्ता आहिस्ता
उन के जाते ही ये वहशत का असर देखा किए