रौशन है मेरा नाम बड़ा नामवर हूँ मैं
शाहिद हैं आसमाँ के सितारे क़मर हूँ मैं
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मुझे बाग़बाँ से गिला ये है कि चमन से बे-ख़बरी रही
सज्दे तिरे कहने से मैं कर लूँ भी तो क्या हो
ज़रा रूठ जाने पे इतनी ख़ुशामद
नज़'अ की और भी तकलीफ़ बढ़ा दी तुम ने
तुम को हम ख़ाक-नशीनों का ख़याल आने तक
आएँ हैं वो मज़ार पे घूँघट उतार के
हुक्म-ए-सय्याद है ता-ख़त्म-ए-तमाशा-ए-बहार
आह को समझे हो क्या दिल से अगर हो जाएगी
वो चार चाँद फ़लक को लगा चला हूँ 'क़मर'
कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं
उन के जाते ही ये वहशत का असर देखा किए
बारिश में अहद तोड़ के गर मय-कशी हुई