यही है गर ख़ुशी तो रात भर गिनते रहो तारे
'क़मर' इस चाँदनी में उन का अब आना तो क्या होगा
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सोज़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ से दिल को बचाए कौन
बोझ इतना भर गई थी रूह-ए-सुबुक निकल के
सुना है ग़ैर की महफ़िल में तुम न जाओगे
अब नज़अ का आलम है मुझ पर तुम अपनी मोहब्बत वापस लो
रौशन है मेरा नाम बड़ा नामवर हूँ मैं
कौन से थे वो तुम्हारे अहद जो टूटे न थे
छोड़ कर घर-बार अपना हसरत-ए-दीदार में
मुझे बाग़बाँ से गिला ये है कि चमन से बे-ख़बरी रही
अगर छूटा भी उस से आइना-ख़ाना तो क्या होगा
रुस्वा करेगी देख के दुनिया मुझे 'क़मर'
कब मेरा नशेमन अहल-ए-चमन गुलशन में गवारा करते हैं
ब-जुज़ तुम्हारे किसी से कोई सवाल नहीं