टूटा जो काबा कौन सी ये जा-ए-ग़म है शैख़
कुछ क़स्र-ए-दिल नहीं कि बनाया न जाएगा
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
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Ahmad Faraz
Anwar Masood
Javed Akhtar
Gulzar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
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दूँ हम-सरी में बैठ के किस ना-सज़ा के साथ
बा'द ख़त आने के उस से था वफ़ा का एहतिमाल
दिल मिरा देख देख जलता है
मैं कहा ख़ल्क़ तुम्हारी जो कमर कहती है
है बे-असर ऐसी ही जो अपनी कशिश-ए-दिल
न जाने कौन सी साअत चमन से बिछड़े थे
न कह कि बे-असर अन्फ़ास-ए-सर्द होते हैं
गह पीर-ए-शैख़ गाह मुरीद-ए-मुग़ाँ रहे
जिस को हस्ती ओ अदम जानते हैं
अबस हैं नासेहा हम से ज़-ख़ुद-रफ़तों की तदबीरें
ऐ इश्क़ मिरे दोश पे तू बोझ रख अपना
छोड़ मावा-ए-ज़क़न ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ में फँसा