टुकड़े कई इक दिल के मैं आपस में सिए हैं
फिर सुब्ह तलक रोने के अस्बाब किए हैं
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सुब्ह तक था वहीं ये मुख़्लिस भी
जूँ इबरत-ए-कोर जल्वा-गर हूँ
मैं न वो हूँ कि तनिक ग़ुस्से में टल जाऊँगा
न बीम-ए-ग़म है ने शादी की हम उम्मीद करते हैं
लगाई आग पानी में ये किस के अक्स ने प्यारे
फूटी भली वो आँख जो आँसू से तर नहीं
पहले ही गधा मिले जहाँ शैख़
एक जागह पे नहीं है मुझे आराम कहीं
जूँ शम्अ दम-ए-सुब्ह मैं याँ से सफ़री हूँ
दर्द-ए-दिल क्यूँ-कि कहूँ मैं उस से
कल ऐ आशोब-ए-नाला आज नहीं
आज आप मिरे हाल पे करते हैं तअस्सुफ़