लगाई आग पानी में ये किस के अक्स ने प्यारे
कि हम-दीगर चली हैं मौज से दरिया में शमशीरें
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तेरी ज़बाँ से ख़स्ता कोई ज़ार है कोई
आगे कुछ उस के ज़िक्र-ए-दिल-ए-ज़ार मत करो
शिकवा न बख़्त से है ने आसमाँ से मुझ को
बा'द ख़त आने के उस से था वफ़ा का एहतिमाल
'क़ाएम' जो कहें हैं फ़ारसी यार
आप जो कुछ क़रार करते हैं
माँगे है तिरे मिलने को बे-तरह से दिल आज
कब मैं कहता हूँ कि तेरा मैं गुनहगार न था
दर्द-ए-दिल क्यूँ-कि कहूँ मैं उस से
मैं कहा ख़ल्क़ तुम्हारी जो कमर कहती है
जिस चश्म को वो मेरा ख़ुश-चश्म नज़र आया
टुक फ़हम इरादत से बरहमन की समझ शैख़