पहले ही गधा मिले जहाँ शैख़
उस काबा को है सलाम अपना
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है बे-असर ऐसी ही जो अपनी कशिश-ए-दिल
ज़ालिम तू मेरी सादा-दिली पर तो रहम कर
गंदुमी रंग जो है दुनिया में
गिर्या तो 'क़ाएम' थमा मिज़्गाँ अभी होंगे न ख़ुश्क
टुक तो ख़ामोश रखो मुँह में ज़बाँ सुनते हो
सहरा पे गर जुनूँ मुझे लावे इताब में
हर-चंद दुख-दही से ज़माने को इश्क़ है
जिस को हस्ती ओ अदम जानते हैं
न बीम-ए-ग़म है ने शादी की हम उम्मीद करते हैं
दिन ही मिलिएगा या शब आइएगा
दर्द-ए-दिल क्यूँ-कि कहूँ मैं उस से
ये पास-ए-दीं तिरा है सब उस वक़्त तक कि शैख़