नक़्श-ए-कफ़-ए-पा ने गुल खिलाए
वीराँ कहाँ अब ये रास्ता है
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वो कहाँ मुझ पे जफ़ा करता था
ख़लिश-ए-तअस्सुर
चाँद चमकने लगता है
अकेला
तेरी निगह से तुझ को ख़बर है कि क्या हुआ
चमन-बंदी पे है महशर बपा क्या
क्यूँ बैठ गए ग़ुबार से हम
माथे पर टीका संदल का अब दिल के कारन रहता है
ख़्वाहिशों की मौत का यारो भला चाहा करो
सूरज की किरन का शोबदा है
धुँदला दिया ज़ीस्त का तसव्वुर
आप क्यूँ छेड़ते हैं दीपक राग