'क़ुतुब' शह न दे मुज दिवाने को पंद
दिवाने कूँ कुच पंद दिया जाए ना
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नज़र तज पे है क्या तमाशा का हाजत
सकी मुख सफ़्हे पर तेरे लिख्या राक़िम मलक मिसरा
सब इख़्तियार मेरा तुज हात है प्यारा
पिया तुज इश्क़ कूँ देती हूँ सुद-बुद हौर जियो दिल में
करें ताक़त गँवा कर आबिदाँ मय-ख़ाना कूँ सज्दा
पिया की याद सूँ पीता हूँ मैं मय
तिरे दरसन की मैं हूँ साईं माती
प्यारी के नैनाँ हैं जैसे कटारे
नबी सदक़े कुतुब शह दिल में कीता
तुमन रौशनी बिन हमन रौशनी नाह
प्यारी सुहाती है अभरन सूँ भारी
तिरे क़द थे सर्व ताज़ा है जम