कहीं शर्मिंदा न हो रस्म-ए-वफ़ा मेरे बा'द

कहीं शर्मिंदा न हो रस्म-ए-वफ़ा मेरे बा'द

मेरे माज़ी को न दो मेरी सज़ा मेरे बा'द

ऐसा लगता है कि सब ख़ून के प्यासे हैं यहाँ

हाए इस शहर का क्या हाल हुआ मेरे बा'द

तिश्ना-लब और भी आएँगे यहाँ मेरी तरह

कौन देगा उन्हें जीने की दुआ मेरे बा'द

मुझ पे ही ख़त्म हुआ क़हर ज़माने-भर का

फिर किसी और का दामन न जला मेरे बा'द

एक ही शब में बने लोग मसीहा कितने

शहर में फिर कोई क़ातिल न रहा मेरे बा'द

अब तो अपनों में भी अगली सी शराफ़त न रही

रिश्ता-ए-मेहर-ओ-वफ़ा टूट गया मेरे बा'द

ग़ालिबन मैं ही यहाँ लाला-ए-सहरा था 'रईस'

फिर न सहरा में कोई फूल खिला मेरे बा'द

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In Hindi By Famous Poet Raees Akhtar. is written by Raees Akhtar. Complete Poem in Hindi by Raees Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.