कुछ न कुछ ख़्वाब पालते रहिए
जिस्म घर से निकालते रहिए
लुत्फ़ लेना है ज़िंदगी का तो
ख़ुद को ख़तरों में डालते रहिए
मेरी नज़रों में सिर्फ़ मंज़िल है
आप कीचड़ उछालते रहिए
कुछ तो बेहतर ज़रूर निकलेगा
रोज़ ख़ुद को खँगालते रहिए
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ये शीशे दिल के जो बिखरे हुए हैं
गुलाबी होंठ ये क़श्क़ा तुम्हारा
दर्द-ए-दिल उम्र-भर नहीं होता
कैसे पाऊँ तुझे गिर्दाब नज़र आता है