लज़्ज़त का ज़हर वक़्त-ए-सहर छोड़ कर कोई
शब के तमाम रिश्ते फ़रामोश कर गया
Allama Iqbal
Wasi Shah
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(484) Peoples Rate This
हम न होते काख़-ए-मुश्त-ए-ख़ाक होता ग़ालिबन
ये कैसा गुल खिलाया है शजर ने
कोई नश्शा न कोई ख़्वाब ख़रीद
मता-ओ-माल-ए-हवस हुब्ब-ए-आल सामने है
यास-ओ-हिरास-ओ-जौर-ओ-जफ़ा से अलग-थलग
किसी को साया किसी को गुल-ओ-समर देगा
सुनो तो आरिज़ा-ए-इख़तिलाज रहने दो
ख़ुद को मुम्ताज़ बनाने की दिली-ख़्वाहिश में
हर इक फ़न में यक़ीनन ताक़ है वो
बराए-नाम ही सही ब-एहतियात कीजिए
सब्ज़ा-ज़ारों की शराफ़त से न खेलो क़तअन
एहसास-ए-ज़िम्मेदारी बेदार हो रहा है