सब्ज़ा-ज़ारों की शराफ़त से न खेलो क़तअन
तुम हवा हो तो ख़लाओं से लिपट कर देखो
Ahmad Faraz
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Gulzar
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Rahat Indori
Jaun Eliya
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Faiz Ahmad Faiz
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हवस-गिरफ़्ता हवाओ निगाहें नीची रखो
हादसों के ख़ौफ़ से एहसास की हद में न था
मुतालेआ की हवस है किताब दे जाओ
हर एक शाख़ थी लर्ज़ां फ़ज़ा में चीख़-ओ-पुकार
मता-ओ-माल-ए-हवस हुब्ब-ए-आल सामने है
कोई नश्शा न कोई ख़्वाब ख़रीद
एहसास-ए-ज़िम्मेदारी बेदार हो रहा है
ख़ुद को मुम्ताज़ बनाने की दिली-ख़्वाहिश में
आप ने अच्छा किया ततहीर-ए-ख़्वाहिश ही न की
वक़्त के इंतिज़ार में वो है
हर इक फ़न में यक़ीनन ताक़ है वो
लज़्ज़त का ज़हर वक़्त-ए-सहर छोड़ कर कोई