हवस-गिरफ़्ता हवाओ निगाहें नीची रखो
शजर खड़े हैं सड़क के क़रीन बे-पर्दा
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Anwar Masood
Gulzar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(512) Peoples Rate This
यास-ओ-हिरास-ओ-जौर-ओ-जफ़ा से अलग-थलग
मता-ओ-माल-ए-हवस हुब्ब-ए-आल सामने है
वक़्त के इंतिज़ार में वो है
सुनो तो आरिज़ा-ए-इख़तिलाज रहने दो
लज़्ज़त का ज़हर वक़्त-ए-सहर छोड़ कर कोई
एहसास-ए-ज़िम्मेदारी बेदार हो रहा है
मुतालेआ की हवस है किताब दे जाओ
ये कैसा गुल खिलाया है शजर ने
आप ने अच्छा किया ततहीर-ए-ख़्वाहिश ही न की
सब्ज़ा-ज़ारों की शराफ़त से न खेलो क़तअन
हर इक फ़न में यक़ीनन ताक़ है वो
बराए-नाम ही सही ब-एहतियात कीजिए