हाल-ए-दिल पूछते हो क्या तुम ने
होते देखा है दिल उदास कहीं
Faiz Ahmad Faiz
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मुमकिन है वो दिन आए कि दुनिया मुझे समझे
है लेकिन अजनबी ऐसा नहीं है
चाँद होता नहीं हर इक चेहरा
रात हम ने जहाँ बसर की है
तेरे आने का इंतिज़ार रहा
बारहा हम पे क़यामत गुज़री
हम ने तो इस इश्क़ में यारो खींचे हैं आज़ार बहुत
अल्फ़ाज़ में बंद हैं मआनी
इश्क़ में भी सियासतें निकलीं
इस से पहले नज़र नहीं आया
कोई ता'मीर की सूरत निकालो
बहुत दिनों में ये उक़्दा खुला कि मैं भी हूँ