देखने वाले यूँ तो बहुत देखे हैं लेकिन
मर जाऊँ जो कोई तेरी अदा से देखे
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सिलसिला-ए-ज़िन्दगी
उफ़ुक़ के उस पार
समझ रहा है तिरी हर ख़ता का हामी मुझे
आइने से मुकर गया कोई
जिन हाथों से बटती ख़ैरातें देखी थीं
सुब्ह-ए-क़यामत जिन होंटों पे दिलासे देखे
बाज़ भी आओ याद आने से
तुम अपनी आँखों को बंद कर लो
अजीब जुम्बिश-ए-लब है ख़िताब भी न करे
मरते नहीं अब इश्क़ में यूँ तो आतिश-ए-फ़ुर्क़त अब भी वही है
हयात दी तो उसे ग़म का सिलसिला भी किया
तजज़िया