हज़ार हुस्न दिल-आरा-ए-दो-जहाँ होता
नसीब इश्क़ न होता तो राएगाँ होता
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अहद-ओ-पैमाँ कर के पैमाने के साथ
इश्क़ दुश्वार नहीं ख़ुश-नज़री मुश्किल है
फ़रोग़-ए-गुल से अलग बर्क़-ए-आशियाँ से अलग
अब इस से क्या ग़रज़ ये हरम है कि दैर है
सख़्त जान-लेवा है सादगी मोहब्बत की
चला है ले के मुझे ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मेरा
हवस-ए-ख़लवत-ए-ख़ुर्शीद-ओ-निशाँ और सही
रंग पर जब वो बज़्म-ए-नाज़ आई
हुस्न-ए-असनाम ब-हर-लम्हा फ़ुज़ूँ है कि नहीं
ख़्वाब-ए-दीदार न देखा हम ने
एक लग़्ज़िश में दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ तक पहुँचे
बुत-गर है न कोई बुत-शिकन है