उस की मर्ज़ी से अलग मज़हब-ओ-ईक़ाँ कब तक
उस की मर्ज़ी से अलग मज़हब-ओ-ईक़ाँ कब तक
सुनो ऐ वाइज़ो ये जंग का मैदाँ कब तक
जागो जागो कि सितारों पे हैं दुनिया के क़दम
अक़्ल के दुश्मनो तुम बेचोगे ईमाँ कब तक
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उस की मर्ज़ी से अलग मज़हब-ओ-ईक़ाँ कब तक
सुनो ऐ वाइज़ो ये जंग का मैदाँ कब तक
जागो जागो कि सितारों पे हैं दुनिया के क़दम
अक़्ल के दुश्मनो तुम बेचोगे ईमाँ कब तक
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