सौ मुश्किलें थीं इश्क़ के आज़ार के लिए
हमवार राह-ए-शौक़ न थी प्यार के लिए
आँखों में इंतिज़ार की बेताबियों के साथ
दर पर खड़े रहे तिरे दीदार के लिए
Javed Akhtar
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हुस्न-ए-बुताँ को देख के मैं दंग रह गया
ख़ानक़ाहों में किसी का बोल अब बाला नहीं
हम कसरत-ए-अनवार से घबराए हुए हैं
उस की मर्ज़ी से अलग मज़हब-ओ-ईक़ाँ कब तक