ज़िंदगी अब इस क़दर सफ़्फ़ाक हो जाएगी क्या
भूक ही मज़दूर की ख़ूराक हो जाएगी क्या
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इस तरह आँखों को नम दिल पर असर करते हुए
यूँही ज़ालिम का रहा राज अगर अब के बरस
ख़ुश्क दामन पे बरसने नहीं देती मुझ को
ये किस दयार के हैं किस के ख़ानदान से हैं
ये वक़्त जब भी लहू का ख़िराज माँगता है
बुलाते हैं हमें मेहनत-कशों के हाथ के छाले
किसी के ज़ख़्म पर अश्कों का फाहा रख दिया जाए
महकती आँखों में सोचा था ख़्वाब उतरेंगे