यहाँ पे हँसना रवा है रोना है बे-हयाई
सुक़ूत-ए-शहर-ए-जुनूँ का मातम ज़रा अलग है
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अख़ीर-ए-शब सर्द राख चूल्हे की झाड़ लाएँ
उस के शर से मैं सदा माँगता रहता हूँ पनाह
मुझ से कल महफ़िल में उस ने मुस्कुरा कर बात की
सारे मंज़र हसीन लगते हैं
मुख़्तसर ही सही मयस्सर है
हमारी बेचैनी उस की पलकें भिगो गई है
वा'दा था कब का बार-ए-ख़ुदा सोचने तो दे
फ़स्ल बोई भी हम ने काटी भी
ख़ूबियों को मस्ख़ कर के ऐब जैसा कर दिया
तुम्हारे आलम से मेरा आलम ज़रा अलग है
सैंत कर ईमान कुछ दिन और रखना है अभी