पैमाना-ए-हाल हो गए हम
गर्दिश में मिसाल हो गए हम
तकमील-ए-कमाल होते होते
तम्हीद-ए-ज़वाल हो गए हम
इम्कान-ए-वजूद के सफ़र पर
निकले तो मुहाल हो गए हम
आईना-ए-कर्ब लफ़्ज़-ओ-मा'नी
फ़रहंग-ए-मलाल हो गए हम
पहले तो रहे हक़ीक़त अफ़रोज़
फिर ख़्वाब-ओ-ख़याल हो गए हम
Habib Jalib
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विसाल-ओ-हिज्र से वाबस्ता तोहमतें भी गईं
नूह के बा'द
सर-ए-राह
दिलों का हाल तो ये है कि रब्त है न गुरेज़
मिरे लहू को मिरी ख़ाक-ए-नागुज़ीर को देख
क्या किसी लम्हा-ए-रफ़्ता ने सताया है तुझे
हम को जन्नत की फ़ज़ा से भी ज़ियादा है अज़ीज़
तारीकियों का हिसाब
सदा अपनी रविश अहल-ए-ज़माना याद रखते हैं
तिरी आरज़ू से भी क्यूँ नहीं ग़म-ए-ज़िंदगी में कोई कमी
अजीब होते हैं आदाब-ए-रुख़स्त-ए-महफ़िल